मैं ने एक सपना देखा कि मैं ने परमेश्वर के साथ साक्षात्कार किया था।
मैं ने महान पहाड़ों को देखा और उसके हाथों की अदभुत रचना को देखा था।
फिर मैंने सूर्यास्त की आश्यर्यजनक सुन्दरता को देखा, और काँपते हुए परमेश्वर के विषय में सोचा कि परमेश्वर दिखने में कैसा होगा
क्योंकि वह तो उस ज्योति में रहता है जिस तक कोई भी नहीं पहुँच सकता है।
सो मैं केवल रो पड़ा और कहा, “इतने दुख, पीड़ाएँ और मृत्यु क्यों है?”
तब उसने वचन से मुझ को उत्तर दिया, “जिस प्रकार एक मनुष्य के पाप कारण मृत्यु संसार में आई थी और सभी मनुष्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी आने लगी, क्योंकि सब ने पाप किया है।
फिर उसने कहा जिस आत्मा ने पाप किया है वह निश्चय ही मरेगी।” तब मैं ने पूछा पाप क्या है? और परमेश्वर ने उत्तर दिया, “आज्ञाओं का पालन न करना ही पाप है।”
वह बाद में अपने व्यवस्ता का गर्जन किया (दस आज्ञा)
1. तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना।
2. तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना।
3. तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ ना लेना।
4. तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना।
5. तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना।
6. तू खून न करना
7. तू व्यभिचार न करना।
8. तू चोरी न करना।
9. तू झूठ न बोलना।
10. तू लालच न करना।
उस के बाद मैंने यीशु का वचन देखा। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डालें वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका। मत्ति 5.28
और पवित्र बाइबल का वचनों से क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारीस न होंगे.. धोखा न खाओ, न वेश्याकामी, न मूर्ति पूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। 1 कुरिन्तियों 6.9
और पर डरपोकों, और अविश्वासियो, और घिनौनों, और हत्यारों और व्यभिचाररियों, और टोन्हों, और मूर्तिपूजकों, और सब झूठों का भाग उस झिल में मिरेगा, जो आग और गन्धक से जलती रहती है. यह दूसरा मृत्यु है। प्रकाशितवाक्य 21:8
वह तुरन्त मेरे अनुभव की, कि मैं बहुत बार परमेश्वर का व्यवस्ता को थोड़ा और न्याय के दिन मैं नरक के पात्र हो सकता हूं। सिर्फ परमेश्वर ही मेरे पाप को नहीं देखा बाल्की मैं खुद मेरा अन्तरात्मा दण्डित करते हैं
मैंने परमेश्वर से पूछा क्या करना चाहिये उसने कहा,
क्या मैने अपने पुत्र को दण्ड देने के लिए नही बेजा।
उसने मेरी सजा अपने ऊपर ले लिया...
प्रेम इस में नहीं, कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया, और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा। 1 यूहन्ना 4.10
असकी व्यवस्ता को हम ने तोड़ा (दस आज्ञा)
और यीशु ने हमारे सारे जुर्माना को दे दिया।
परमेश्वर ने अपने प्रेम को हम पर दिखाया, उस में,
जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। फिर से वह मुर्दों से जी उठा और मृत्यु को पराजय किया। रोमियों 5:8
मैं अपने स्पने से अचानक उठा और यह माना कि मुझे उस यीशु को चुनना चाहिए।
मै सप्ना देखता रहता कि परमेश्वर मेरे पाप पर गुस्सा नही है करता और हमेशा के लिए उस नरक में अपना जीवन बिताता।
अथवा, मैं मन फिरा कर और उद्दारकरता यीशु मसीह को स्वीकार कर और उस पर विश्वास करके परमेश्वर का उपहार जो मेरे लिये अनन्तकाल जीवन का है।
आप के पास भी वो चुनाव है।