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पवित्र बाइबल कहती है, “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि अपना इकलौता पुत्र (यीशु क्रीस्ट) दे दिया। ताकि जो कोई उस पर विश्वास लाए नाश न हो वरन अनन्त जीवन पाए।” (युहन्ना 3 का 16 पद)
यीशु ने यूहन्ना 10 के 10 पद में यह भी कहा था, “मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत का जीवन पाएँ।”
लेकिन समस्या यहाँ पर है:
हम सब ने बुरा कहा, बुरा सोचा और बुरा किया है। और इसे बाइबल पाप कहती है। बाइबल रोमियो 3 के 23 पद में कहती है, “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।”
और फिर रोमियो 6 का 23 पद यह भी कहता है, “पाप की मज़दूरी मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।”
सुसमाचार है?
यीशु हमारे लिए मारा गया जिससे हम अनन्त जीवन जी सकें।
रोमियो 5 का 8 पद कहता है, “परमेश्वर ने अपना प्रेम इस रीति से प्रकट किया था कि जब हम पापी ही थे यीशु मसीह ने हमारे लिए अपनी जान दी थी।”
पर यह बात उसकी मृत्यु के साथ समाप्त नहीं हुई थी। क्योंकि यीशु तो तीसरे दिन मुदों में से जी उठे थे।
1 कुरन्थियों 15 के 3-4 पद भी कहते हैं, “कि पवित्रशास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिए मरा और गाड़ा गया और पवित्रशास्त्र के अनुसार तीसरे दिन मुर्दों में जी उठा।”
यीशु ही परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता है।
यीशु ही ने युहन्ना 14 के 6 पद में कहा था, “मार्ग, सत्य, और जीवन मैं ही हूँ। मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता है।”
हम अपने आप उद्धार नहीं पा सकते हैं। हम तो केवल परमेश्वर के अनुग्रह ही से उद्धार पा सकते हैं वह भी तब जब हम यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं। हमें केवल इतना करना है कि हम मान लें कि हम पापी हैं और यह कि यीशु आपके लिए क्रूसपर मारा गया था। और आप उससे क्षमा माँग लें। वह आपको जानता है और आपसे प्रेम करता है। उसे एक ही बात पसंद है और वह यह है कि वह आपके दिल में क्या है, आप कितने इमानदार हैं और आपका व्यवहार कैसा है।
हमारी सलाह है कि आप हमारे साथ नीचे लिखी प्रार्थना को करें।
“प्रिय प्रभु यीशु,
मैंने जीवन में जो भी गलत किया है उसके लिए मुझे क्षमा करें। मैं आप से क्षमा चाहती हूँ और बिनती करती हूँ कि मुझे उन सब गलतियों से फिरा दे। मैं आपका धन्यवाद करती हूँ कि आपने मेरे लिए क्रूस पर अपनी जान दी और मुझे पापों से मुक्त किया है। कृपया मेरे जीवन में आ जाएँ और मुझ को पवित्र आत्मा से भर दें और सदा मेरे साथ रहें।
धन्यवाद प्रभु यीशु।
आमीन।”
क्या आपने यह प्रार्थना की है?
>> हाँ, मैं ने यह प्रार्थना की है और मैं यीशु के साथ आगे बढ़ना चाहता हूँ।